कृषि कानूनों की वापसी से टूट गया 'मजबूत सरकार'


नई दिल्ली हमारी तपस्या में शायद कमी रह गई, हमारी नीयत साफ थी लेकिन हम समझा नहीं पाए...मैंने जो कुछ किया वह किसानों के लिए था और अब मैं जो कुछ कर रहा हूं वह देश के लिए है...विवादित तीन कृषि कानूनों को वापस लेने के लिए प्रधानमंत्री नरेद्र मोदी ने जो कुछ कहा, उसका सार यही है। नोटबंदी जैसे फैसले का बचाव करते आए प्रधानमंत्री नरेंद्र मोदी ने पहली बार किसी मुद्दे पर माफी मांगी। राष्ट्र के नाम संबोधन में उन्होंने देश से माफी मांगी कि कृषि कानूनों को लेकर उनकी सरकार कुछ लोगों को समझा नहीं पाई। लेकिन पीएम मोदी और बीजेपी के सामने अब नई चुनौती है। एक नई तरह की तपस्या करनी होगी।



कृषि कानूनों के कथित फायदों को आंदोलनकारी किसानों को न समझा पाने वाली मोदी सरकार और बीजेपी क्या अब पार्टी काडर से इतर अपने समर्थकों को समझा पाएगी कि क्यों कानूनों को वापस लेना जरूरी था। उन समर्थकों को जो इस फैसले से निराश हैं और जिन्हें विरोधियों के चुभते तानों का सामना करना पड़ रहा है। अगर 300 से ज्यादा सीटें जीतकर आने वाली मोदी की 'मजबूत सरकार' कृषि सुधारों पर अडिग नहीं रह सकी, तो भविष्य में कौन सी सरकार सुधारों के लिए डट सकेगी? इतना साफ है कि इस फैसले से 'मजबूत सरकार' की जिस छवि पर नरेंद्र मोदी इतराते थे, वह एक झटके में छिन्न-भिन्न होती दिख रही है। आंदोलनकारी किसानों ने यह दिखा दिया कि मोदी सरकार भी झुक सकती है, बस झुकाने वाला चाहिए।