आम चुनाव से पहले फेसबुक ने चुनाव आयोग को किया था राजी, खुद बनाई थी स्वैच्छिक आचार संहिता
नई दिल्ली- फेसबुक के आंतरिक दस्तावेजों से चौंकाने वाला खुलासा हुआ है। सामने आया है कि 2019 में भारत के आम चुनावों से पहले फेसबुक ने चुनाव आयोग के सख्त सोशल मीडिया नियमों से बचने के लिए स्वैच्छिक संहिता लागू की थी, इसके लिए उसने चुनाव आयोग के अधिकारियों को भी राजी कर लिया था। यह खुलासा फेसबुक की मुखबिरी करने वाली पूर्व कर्मचारी फ्रांसेस हॉगेन की ओर से सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों से हुआ है। हिंदुस्तान टाइम्स की रिपोर्ट के मुताबिक, सार्वजनिक किए गए दस्तावेजों में खुलासा हुआ है कि फेसबुक ने स्वैच्छिक आचार संहिता के लिए इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया(IAMAI) को आगे रखा था।
वहीं चुनाव आयोग के दस्तावेज दिखाते हैं कि वह चुनाव के दौरान सोशल मीडिया पर लगाम लगाने के लिए एक सख्त नियामक ढांचा चाहता था। इस खुलासे के बाद चुनाव आयोग के प्रवक्ता का कहना है कि हम फेसबुक की आंतरिक रिपोर्ट से परिचित नहीं हैं, लेकिन यह दावा सही नहीं है। क्योंकि किसी भी चुनाव में वोटिंग से 48 घंटे पहले ही सोशल मीडिया के साथ इलेक्ट्रॉनिक मीडिया पर राजनीतिक विज्ञापन प्रतिबंधित होता है।
वहीं मेटा(पहले फेसबुक) के प्रवक्ता ने एचटी को एक ईमेल के माध्यम से इसका जवाब दिया। उन्होंने कहा कि भारत में हम अकेले नहीं हैं जिसने स्वैच्छिक आचार संहिता बनाई। चुनाव आयोग को इसके लिए मनाने वालों में अन्य सोशल मीडिया कंपनियां भी शामिल थीं।
जुलाई 2018 में सामने आया था नियामक ढांचा
चुनाव आयोग ने सोशल मीडिया प्लेटफॉर्म पर लगाम लगाने के लिए इस तरह का ढांचा बनाने के लिए तत्कालीन उप चुनाव आयुक्त उमेश सिन्हा के नेतृत्व में एक समिति का गठन किया था। जुलाई, 2018 में इस समिति ने अपनी रिपोर्ट में सिफारिश की कि चुनाव आयोग सोशल मीडिया एजेंसियों को निर्देश दे कि वे यह सुनिश्चित करें कि मतदान से 48 घंटे पहले कोई भी राजनीतिक विज्ञापन अपलोड नहीं किया जाएगा। इसके बाद 29 मई 2019 यानी आम चुनाव के पांच दिन बाद फेसबुक ने अपने कर्मचारियों को एक मेमो दिया। इसमें वह सब कुछ लिखा था जो फेसबुक ने चुनाव के दौरान किया। कंपनी ने कैसे सक्रिय निगरानी की और चुनाव आयोग द्वारा चयनित की गई सामग्री पर किस तरह से कार्रवाई की गई, यहां तक कि इस मेमो में स्वैच्छिक आचार संहिता तक का जिक्र था।
पर्याप्त नहीं स्वैच्छिक आचार संहिता
म्यूनिक विश्वविद्यालय के प्रोफेसर सहाना उडुपा और हार्वर्ड विवि के जॉन शोरेंस्टीन फेलो कहते हैं कि स्वैच्छिक आचार संहिता पर्याप्त नहीं है। यह बेहद ही कमजोर भी है। क्योंकि जिस तरह से इसे बनाया गया है, इसे बहुत ही लचीला रखा गया है। सहाना उडुपा ने कहा कि इंटरनेट एंड मोबाइल एसोसिएशन ऑफ इंडिया के माध्यम से चुनाव आयोग को बातचीत करके सोशल मीडिया कंपनी ने उसे स्वैच्छिक आचार संहिता के लिए राजी किया, क्योंकि वे किसी भी प्रकार के विरोध से बचना चाहती थी।
दबाव बनाने में कामियाब हुआ फेसबुक
रिपोर्ट में कहा गया है कि सोशल मीडिया पर नियामक ढांचा बनाने में लगने वाले वक्त के कारण फेसबुक चुनाव आयोग पर दबाव बनाने में कामियाब हुआ और उसने अधिकारियों को स्वैच्छिक आचार संहिता के लिए राजी कर लिया। नाम न छापने की शर्त पर एक अधिकारी ने कहा कि संसद के माध्यम से नियामक ढांच के को एक कानून का रूप लेने में समय लगता, ऐसे में स्वैच्छिक आचार संहिता एक उचित विचार था। अधिकारी ने कहा कि हमारी प्राथमिकता एक ऐसा नियामक ढांचा बनाने की थी, जहां शिकायतों का तेजी से समाधान हो और सोशल मीडिया कंपनियां चुनाव आयोग के निर्देशों का पालन करें।